8 साल की उम्र में गाया था एम एस सुब्बालक्ष्मी ने पहला गाना, महात्मा गांधी तक थे मुरीद

सुब्बालक्ष्मी ने इस बात को स्वीकार किया था कि अगर मुझे अपनी पति से मार्गदर्शन और सहायता नहीं मिली होती, तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती.

8 साल की उम्र में गाया था एम एस सुब्बालक्ष्मी ने पहला गाना, महात्मा गांधी तक थे मुरीद

एम एस सुब्बुलक्ष्मी

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एम एस सुब्बालक्ष्मी एक मशहूर सिंगर और एक्टर थीं. उनका जन्म 16 सितंबर 1916 को मदुरै, तमिलनाडु के मंदिर में हुआ था. इसी वजह से उन्हें देवकन्या के रूप में कुजम्मा कहा जाता था. वो भक्ति वाले गीत गाया करती थीं. उन्हें भक्ति गायन के संस्कार वहीं से मिले थे. एम एस सुब्बालक्ष्मी ने अपने जीवन का पहला संगीत कार्यक्रम महज 8 साल की उम्र में कुम्बाकोनम में महामहम उत्सव के दौरान हुआ था. इसी के बाद वो संगीत के क्षेत्र में आ गई थीं.

8 साल की छोटी उम्र से शुरू किया था गाना

सुब्बालक्ष्मी ने सेम्मानगुडी श्रीनिवास अय्यर से कर्नाटक संगीत की शिक्षा ली थी. जबकि हिंदुस्तानी संगीत के गुरु रहे पंडित नारायण राव व्यास. सुब्बालक्ष्मी जब महज 10 साल की ही थी, उसी समय उनका पहला भक्ति एलबम आया था. उसी एलबम के बाद वो मद्रास संगीत अकादमी में आ गई थीं. वो उनकी मातृभाषा कन्नड़ थी लेकिन उन्होंने कई भाषाओं में गाया. जिस वक्त सुब्बालक्ष्मी ने अपना गायन करियर शुरू किया था, उस वक्त पुरुष गायकों का ही दबदबा हुआ करता था. लेकिन सुब्बालक्ष्मी ने इस परंपरा को हमेशा के लिए तोड़ दिया.

पहली फिल्म थी ‘भक्त मीरा’

सुब्बालक्ष्मी ने गायन के अलावा फिल्मों में अभिनय भी किया. साल 1945 में उनकी यादगार फिल्म ‘भक्त मीरा’ आई थी. इस फिल्म में मीरा के भजन लिए गए थे, जिन्हें सुब्बालक्ष्मी ने ही गाया था. वो भजन आज भी बेहद फेमस हैं. उनकी दूसरी फिल्मों में ‘सेवा सदनम’, ‘सावित्री’ और तमिल में ‘मीरा’ आई लेकिन बाद में उन्हें लगा कि, वो संगीत के क्षेत्र में ही काम करना ज्यादा पसंद करेंगी.

लता मंगेशकर ने दी थी ‘तपस्विनी’ की संज्ञा

17 साल की उम्र में सुब्बालक्ष्मी ने चेन्नई के फेमस म्यूजिक अकैडमी में संगीत कार्यक्रम पेश किया. उनके भजन ‘मोरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो ना कोई…’ आज भी कानों में गूंजते रहते हैं. सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने उन्हें ‘तपस्विनी’ की संज्ञा दी थी जबकि उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ने उन्हें ‘सुस्वरलक्ष्मी’ कहा था तो किशोरी आमोनकर ने उन्हें ‘आठवां सुर’ कहा. जवाहर लाल नेहरु और महात्मा गांधी तक उनके प्रशंसक थे.

संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में पेश किया था संगीत कार्यक्रम

सुब्बालक्ष्मी ऐसी पहली भारतीय सिंगर हैं, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में संगीत कार्यक्रम पेश किया था. साथ ही वो पहली ऐसी महिला गायिका हैं जिन्हें कर्नाटक संगीत का सर्वोत्तम पुरस्कार, संगीत कलानिधि हासिल हुआ. साल 1998 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न दिया गया. इसके साथ ही उन्हें साल 1954 में पद्म भूषण, साल 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, साल 1974 में रैमन मैग्सेसे पुरस्कार, साल 1975 में पद्म विभूषण, साल 1988 में कैलाश सम्मान और साल 1998 में उन्हें कई विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधि से सम्मानित किया.

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पति का रहा बेहतरीन सिंगर बनने में मार्गदर्शन

सुब्बालक्ष्मी को दुनिया की बेहतरीन सिंगर बनाने में उनके पति का मार्गदर्शन रहा है. सुब्बालक्ष्मी ने इस बात को स्वीकार किया था कि अगर मुझे अपनी पति से मार्गदर्शन और सहायता नहीं मिली होती, तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती. वो हमेशा इसके लिए अपने पति का आभार मानती रहीं. सुब्बालक्ष्मी का 88 साल की उम्र में साल 2004 में निधन हो गया था.

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